Saturday, February 13, 2010

क्या यही प्यार है...














हमेशा की तरह इस बार बुजुर्गों ने नहीं कहा। हाँ लेकिन युवापीढ़ी ने जरूर कहा। वैलेंटाइन डे यानि के प्रेमियों का पर्व। दो दिल का मिलन। इस दिन कोई प्यार का हाल-ए-दिल बयां करता है तो कोई अपनी वैलेंटाइन के लिए पूरा दिन न्यौछावर करता है।

14 फ़रवरी । हाँ। प्रेमपर्व। प्रेम के पंछियों का पर्व। जिस तरह एक बच्चे को उसका तोहफा उसे सबसे अजीज होता है। ठीक उसी प्रकार प्रेमी पक्षी एक दुसरे के लिए अपने आप को तोहफा समझते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने "समझते हैं" क्यों लिखा। क्या लगता है आपको। क्या वाकेई में प्रेम जैसा कुछ है आज के दौर में। दो-चार प्रेम कि बाते कर लेने मात्र से प्रेम नहीं हो सकता है।

आज प्रेम कि परिभाषा बदल चुकी है। प्रेम केवल स्वार्थ मात्र रह गया है। जी हाँ केवल स्वार्थ। जिसके साथ जीने मरने कि कसमें खायीं थी। आज उसी को हम समझ नहीं रहे। अगर कोई लड़की परिस्तिथिवश अपने प्यार को प्यार नहीं दे पा रही हो तो इसका मतलब ये तो बिलकुल ही नहीं है कि प्रेमी आक्रोश में आकर उसकी जान ले ले।

ये कैसा प्यार है। हाँ शायद आज के दौर में यही प्यार है।

मैं उन तमाम प्रेमियों को सन्देश देना चाहता हूँ कि प्यार जबरदस्ती कि चीज़ नहीं होती। प्यार तो एक एहसास है जिसे अलफ़ाज़ कि जरूरत नहीं होती.... फिर भी हैप्पी वैलेंटाइन डे।

Happy Valentine Day...















If u luv someone
No need to set her free or do suspect her
No need to say about that she will come or not
It's over to u that
Make that person happy
whom u luv d most
Than see How d life goes on...

Friday, February 5, 2010

एहसास माँ को...

पता नहीं पर क्यूँ लेकिन लिखने का मन किया और लिख डाला। हर बार की तरह 4 फ़रवरी की सुबह भी मेरे लिए एक नया सवेरा लेकर आया। सब कुछ ठीक चल रहा था ऑफिस में भी मस्ती के साथ पूरा दिन बीता लेकिन होनी को कौन टाल सकता हैजो होना है वह हो कर ही रहेगा

मैं
थोड़ा भावुक हूँ इसलिए भावनाओं में जल्दी बहक जाता हूँ28 फ़रवरी को रंगों का पर्व है और इस दिन हर कोई अपने रंग में सराबोर रहता है मन में अजीब सा कौतुहल घर जाने को लेकिन उफ़! ये काम कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़ता। मेरी बॉस। काफी एनर्जेटिक और हार्डवर्कर भी। मुझसे कहा ग्वालियर जाना है। मैंने पहले कहा था न। भावुक। हाय ये कमजोर दिल। नहीं माना। ले ली टेंशन। मन में दो बातें घर कर गयीं। फिर क्या, एक ओर घर की याद दूसरी ओर बॉस की बात।

शाम को ऑफिस में ब्लॉग देखा फिर देखी घड़ी। घड़ी की सुई बता रही थी कि वापस जाने का वक़्त हो चला है। पहली बार दोस्त के साथ न जाकर अकेले ही निकल गया। लेकिन इस वक़्त भी अकेला नहीं था। साथ में थी मन में दो बातें। जो आपस में टकरा रही थी।

बाहर सड़क पर ट्रैफिक भी जबरदस्त थी। मैं चला जा रहा था कि अचानक सामने से मारूति अल्टो से जबरदस्त टक्कर हो गई। एक पल तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ। लेकिन भगवान और परिवार कि आशीष कि वजह से मुझे कुछ नहीं हुआ। सारे जख्म मेरी गाड़ी ने अपने ऊपर ले लिया।

लेकिन इन सब से दूर बैठी मेरी माँ को मेरे दर्द का एहसास हुआ और एक्सिडेंट के ठीक आधे घंटे बाद घर से पापा का कॉल आया। सबसे पहले मुझसे पुछा वहां सबकुछ ठीक है कि नहीं। मम्मी चिंता कर रही है और तुम फ़ोन भी नहीं करते हो। इतना कहते ही माँ ने फिर मेरा हाल पुछा। मैं घबरा गया। क्या बताऊँ। मैंने कहा कि यहाँ सब ठीक है...

लेकिन ये माँ कि ममता ही है जो उतनी दूर हो कर भी अपने बेटे पर आये खतरे को भांप लिया।

Monday, February 1, 2010

संवेदना

हर दिन हजारों मौत मरता हूं
जब भी होता हूं अखबार और चैनलों से रूबरू,
देख चारों ओर
मारकाट, अत्याचार और बलात्कार।
पूरे शरीर में एक सिहरन सी उठती है।

ख़बर में आज एक और इज्जत हुई तार-तार
फिर हुई नारी शक्ति लाचार, खूनी व वहसियों की शिकार
वहीं अपनो ने ही
धारदार हथियार से
अपने ही बंधुओं पर किया वार

यह क्या हो रहा है?
प्रभु भी सोच रहे होंगे, कितना बदल गया है संसार।
जिस बुद्धिजीवी प्राणी की रचना की
आज वही सृष्टि का
नाश करने पर उतारू हो गए है।