आजकल फेसबुक पर रोज एक घोर नारीवादी, महिलावादी,
नारी अधिकारों की शुभचिंतक. आजादख्याल लड़की, आधी आबादी की झंडाबरदार और
विमेंस बर्ल्ड की अगुआ की पोस्ट देख रहा हूं, जो खूब लिखती हैं....लेकिन
उनकी हर पोस्ट में एक ही स्यापा होता है...उन्हें पुरुषों से बेइंतहा
शिकायत है...वो ये बताती नहीं थकतीं कि पुरुष समाज, कैसे-कैसे नारियों पर
अत्याचार करता आया है और कर रहा है...महिलाओं के लिए तो ये दुनिया किसी नरक
से कम नहीं....उनकी चले तो दुनिया को
सिर्फ और सिर्फ महिलाओं से पाट दे...पुरुषों के लिए इस प्रकृति में कोई जगह
ही नहीं...उन्हें हर प्यार करने वाला हसबैंड-बॉयफ्रेंड-भाई-पिता 'धोखेबाज'
दिखता है...उनकी राय में परुष, महिलाओं से सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए
प्यार करते हैं, सब के सब घोर स्वार्थी होते हैं...उनकी राय में अगर आपके
हसबेंड को आपको बर्थडे याद है और वह कोई गिफ्ट ला रहा है, तो यह सिर्फ
दिखावा है...यह हसबैंड-भाई की कोई चाल है...वगैरह-वगैरह...वो आपको सावधान
करती हैं कि इन सब चीजों को तवज्जो मत दीजिए...आजाद ख्याल
बनिए...वगैरह-वगैरह...
अब उन्हें कोई समझाए कि ये दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है, जैसा उन्हें लगता है...अगर आपका हसबैंड-बाप-भाई आपको प्यार से चूमता है तो ये दिखावा नहीं होता...भगवान ने प्यार करना सिर्फ महिलाओं को नहीं सिखाया है...ये प्राकृतिक गुण औरत-मर्द दोनों में दिया है...अगर इस्लाम और
ईसाई मजहब के नजरिए से देखें तो आदम ने हव्वा के कहने पर ही जन्नत में उस वऋक्ष का फल तोड़ा था, जिसे तोड़ने के लिए खुदा ने मना किया था...आदम ने ऐसा सिर्फ हव्वा की मुहब्बत में किया था, खुदा का हुक्म तोड़ दिया था...इसी तरह अगर हिंदू माइथॉलॉजी की बात करें तो अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए राम ने क्या जतन नहीं किए...समुद्र पर पुल बना दिया, कितनी लड़ाइयां लड़ीं और अंततः रावण को मारकर सीता को लंका से मुक्त कराया...
शायद ये उदाहदरण नाकाफी हो सकते हैं, ये बताने के लिए कि पुरुष भी प्यार कर सकते हैं, उसी शिद्दत से, जितनी शिद्दत से महिलाएं करती हैं...लेकिन अपने रोजमर्रा के जीवन में क्या महिलाएं किसी न किसी रूप में पुरुषों का प्यार नहीं पातीं??? एक शिक्षक के रूप में, बॉस के रूप में, घर में, बाहर...हर जगह...तो फिर बात-बात में पुरुषों को गाली देना और उसे नारी अधिकार से जोड़ देना कितना उचित है??? ऐसा करके तो आप विधाता के उस विधान का अपमान कर रही हैं, जिन्होंने इस प्रकृति की रचना की है...मर्द और औरत, दोनों एक-दूसरे के पूरक है...एक के बिना दूसरे का ठीक उसी तरह अस्तित्व नहीं, जिस तरह अंधेरे के बिना उजाले की कोई अहमियत नहीं...
सो अगली बार ऐसी कोई पोस्ट देखिए, तो जोश में उसे लाइक करके आप भी 'महिलावादी' बनने की जल्दी मत दिखाइए...पहले पढ़िए, समझिए और फिर उसे Thumbs Up or Thumbs down का तमगा दीजिए...अगर आप आचार-विचार-व्यवहार में अच्छे हैं, ईमानदार है तो आपको किसी से सर्टिफेकेट की जरूरत नहीं...हैरत होती है कि उनकी हर पोस्ट को लाइक करने और शेयर करने वालो में पुरुषों की तादाद ज्यादा है...इसे समझने की जरूरत है...किसी समाजशास्त्री-मानव विज्ञान शास्त्री से पूछने की जरूरत है कि ऐसा क्यों है???
साभार...Nadim S Akhtar
अब उन्हें कोई समझाए कि ये दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है, जैसा उन्हें लगता है...अगर आपका हसबैंड-बाप-भाई आपको प्यार से चूमता है तो ये दिखावा नहीं होता...भगवान ने प्यार करना सिर्फ महिलाओं को नहीं सिखाया है...ये प्राकृतिक गुण औरत-मर्द दोनों में दिया है...अगर इस्लाम और
ईसाई मजहब के नजरिए से देखें तो आदम ने हव्वा के कहने पर ही जन्नत में उस वऋक्ष का फल तोड़ा था, जिसे तोड़ने के लिए खुदा ने मना किया था...आदम ने ऐसा सिर्फ हव्वा की मुहब्बत में किया था, खुदा का हुक्म तोड़ दिया था...इसी तरह अगर हिंदू माइथॉलॉजी की बात करें तो अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए राम ने क्या जतन नहीं किए...समुद्र पर पुल बना दिया, कितनी लड़ाइयां लड़ीं और अंततः रावण को मारकर सीता को लंका से मुक्त कराया...
शायद ये उदाहदरण नाकाफी हो सकते हैं, ये बताने के लिए कि पुरुष भी प्यार कर सकते हैं, उसी शिद्दत से, जितनी शिद्दत से महिलाएं करती हैं...लेकिन अपने रोजमर्रा के जीवन में क्या महिलाएं किसी न किसी रूप में पुरुषों का प्यार नहीं पातीं??? एक शिक्षक के रूप में, बॉस के रूप में, घर में, बाहर...हर जगह...तो फिर बात-बात में पुरुषों को गाली देना और उसे नारी अधिकार से जोड़ देना कितना उचित है??? ऐसा करके तो आप विधाता के उस विधान का अपमान कर रही हैं, जिन्होंने इस प्रकृति की रचना की है...मर्द और औरत, दोनों एक-दूसरे के पूरक है...एक के बिना दूसरे का ठीक उसी तरह अस्तित्व नहीं, जिस तरह अंधेरे के बिना उजाले की कोई अहमियत नहीं...
सो अगली बार ऐसी कोई पोस्ट देखिए, तो जोश में उसे लाइक करके आप भी 'महिलावादी' बनने की जल्दी मत दिखाइए...पहले पढ़िए, समझिए और फिर उसे Thumbs Up or Thumbs down का तमगा दीजिए...अगर आप आचार-विचार-व्यवहार में अच्छे हैं, ईमानदार है तो आपको किसी से सर्टिफेकेट की जरूरत नहीं...हैरत होती है कि उनकी हर पोस्ट को लाइक करने और शेयर करने वालो में पुरुषों की तादाद ज्यादा है...इसे समझने की जरूरत है...किसी समाजशास्त्री-मानव विज्ञान शास्त्री से पूछने की जरूरत है कि ऐसा क्यों है???
साभार...Nadim S Akhtar