अब वो दिन दूर नहीं जब पप्पू संग दीपू और मीनू संग सीमा की बारात आप के घरों के बगल से गुजरेगी। पहले सुना था पप्पू पास हो गया है, लेकिन अब तो दीपू, मीनू, सीमा सभी पास हो गए हैं। अब वो एक दुसरे को फ्लाइंग किस्स देंगे और पुलिस केवल मूकदर्शक बनी देखती रहेगी।
भई! अब कौन
धारा 14 और 21 का उल्लंघन करे। किसी के निजी कार्य में दखल देने का किसी को अधिकार नहीं है। बदलते ज़माने के साथ-साथ प्यार की परिभाषा भी बदल रही है जुहू चौपाटी, विक्टोरिया पार्क में अब दो लड़के और दो लडकियां (माफ़ कीजियेगा वयस्क) इश्क लड़ायेंगे और उनके मुह से निकलेगा " समलैंगिक सम्बन्ध " जरा जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा। बहुत हो गया मजाक- मस्ती...। आप और हम सभी जानते हैं कि भारत संस्कृति का देश है, लेकिन आज हमारे देश को क्या हो गया है? ऐसा लग रहा है कि पाश्चात्य संस्कृति के भी कान काट लिए गए हों। चौंकिए मत, ये समाज में चंद लोगों कि वजह से ही हुआ है। बहस का मुद्दा है धारा 377 । 149 साल के लम्बे इतिहास में जो पहले नहीं हुआ, वो 2 जून, 2009 को हो गया। समलैंगिक सम्बन्ध को क्लीन चिट दे दी गयी। अप्राकृतिक! जिसकी भगवान ने भी मंजूरी नहीं दी किसी को। समाज आज जिस चीज को सही नहीं मानता, उसी को रजामंदी दे दी गयी। माना कि सभी को समान हक मिलना चाहिए, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि जो अमानवीय कृत्य कि श्रेणी में आता हो, उसे नजरअंदाज कर दिया जाये। यह समाज में रह रहे उन लोगों कि मानसिकताओं के साथ बलात्कार है, जो समलैंगिक सम्बन्ध को सही नहीं मानते। जरा सोचिये कि आने वाली पीढी पर इसका क्या असर पड़ेगा? कल तक जिस कार्य को अपराध माना जाता था, आज वो अपराध की श्रेणी में नहीं है। शायद हम यह नहीं जानते कि ऐसे सम्बन्ध को रजामंदी देने से हम एड्स जैसी भयावह बिमारी को भी न्योता दे रहे हैं।
- अभिषेक राय 3 June 2009