यह शर्मनाक घटना तमिलनाडु के तिरुनलवली जिले की है।वहां
पड़ा था और उसके सामने से ७० कारों का काफिला निकल गया, पास हो के भी कोई नहीं था उसके पास। जाबांज था वो। समाज की गंदगी को मिटाने की एक छोटी सी कोशिश की थी उसने। सफलता के चार कदम उसने भी बढ़ाये थे। शुक्रवार के पहले एक हंसते हुए परिवार का सदस्य था। देर रात घर में कोई अपना उसका इंतजार पलके बिछाए कर रहा था। किसे पता था कि वह कभी नहीं लौट कर आएगा। पिछले वर्ष ज्योतिषों के मुख से सुना था कि साल की शुरुआत ग्रहण से होगी। हर कोई इस ग्रहण के प्रसाद का भागीदार होगा। लेकिन इसमें उसकी क्या गलती थी? बस इतना कि समाज में पनपे एक गंदे कीड़े की दंष से उसमें रह रहे लोगों को उसके दंश से मुक्त करना।
आर. वेत्रिवेल नाम था उस जाबांज एसआई का। मारा गया दुष्मनों के हाथ। एक दुश्मन ने दुश्मनी निभाई और दूसरे वो दो मंत्री। उनसे तो अच्छा दुश्मन भले। काश वेत्रिवेल दलित होता! तो शायद बात कुछ और ही होती। लेकिन इसमें भी उसका क्या दोष? वैसे भी किस्मत का मारा था वो।
लाईव आज की पहली डिमांड। सबकुछ लाईव होना चाहिए। अरे! वह भी किसी परिवार का सदस्य होगा। कोई तो होता जो उसे बचा पाता। आह! मैं तो भूल ही गया। वीडियों के रूप में उसकी यादें तो रही। मुझे माफ करना थोड़ा जज्बाती हो गया। क्या करूं ऐसे मुद्दे पर जल्दी आपा खो बैठता हूं।
नेता किसी का न होता। ये तो एसआई के तड़प-तड़पकर मरने के बाद आप सभी को पता चल ही गया होगा। आज एक वेत्रिवेल शहीद हुआ है कल कोई और। सिलसिला इसी तरह से चलता रहेगा और किसी न किसी रूप में फिर कोई हंसता परिवार मुरझाया हुआ फूल बन जाएगा। हम फिर टीवी चैनल पर किसी की लाईव मौत को हाथ पर हाथ धरकर देखेंगे।
कोई है जो उन बेशर्म मंत्रियों को कठघरे में लाएगा। क्योंकी बाकी बचे बेशर्म छिंटाकशीं करेंगे। कहां गई संवेदना?