कभी जो करीब था मेरे |
कभी जो करीब था मेरे
आज क्यूँ दूर होता जा रहा है
क्या थी मेरी गलती
जो पल में मुझे भुला रहा है
शायद समझ न पाया वह मुझे
या समझना चाहता नहीं है
क्यूँ मेरे प्यार को
यूँ ही बेवफाई का नाम दे रहा है
जहाँ मेरी एक मुस्कान से
जगमगा उठती थी उसकी दुनिया
आज उसी मुस्कान को
फरेब समझ रहा है
जिसको मेरे हाथ का साथ था प्यारा
क्यों मेरे हाथों को
जंजीर समझ रहा है
कभी जो करीब था मेरे
क्यूँ दूर होता लग रहा है
लेखिका मेरी सखी है...
और प्यार से उन्हें हम शिव बुलाते हैं...
1 comment:
इस रचना ने दिल को छुआ!
अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!
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