Saturday, January 9, 2010
शहीद की लाईव मौत
यह शर्मनाक घटना तमिलनाडु के तिरुनलवली जिले की है।
वहां पड़ा था और उसके सामने से ७० कारों का काफिला निकल गया, पास हो के भी कोई नहीं था उसके पास। जाबांज था वो। समाज की गंदगी को मिटाने की एक छोटी सी कोशिश की थी उसने। सफलता के चार कदम उसने भी बढ़ाये थे। शुक्रवार के पहले एक हंसते हुए परिवार का सदस्य था। देर रात घर में कोई अपना उसका इंतजार पलके बिछाए कर रहा था। किसे पता था कि वह कभी नहीं लौट कर आएगा। पिछले वर्ष ज्योतिषों के मुख से सुना था कि साल की शुरुआत ग्रहण से होगी। हर कोई इस ग्रहण के प्रसाद का भागीदार होगा। लेकिन इसमें उसकी क्या गलती थी? बस इतना कि समाज में पनपे एक गंदे कीड़े की दंष से उसमें रह रहे लोगों को उसके दंश से मुक्त करना।
आर. वेत्रिवेल नाम था उस जाबांज एसआई का। मारा गया दुष्मनों के हाथ। एक दुश्मन ने दुश्मनी निभाई और दूसरे वो दो मंत्री। उनसे तो अच्छा दुश्मन भले। काश वेत्रिवेल दलित होता! तो शायद बात कुछ और ही होती। लेकिन इसमें भी उसका क्या दोष? वैसे भी किस्मत का मारा था वो।
लाईव आज की पहली डिमांड। सबकुछ लाईव होना चाहिए। अरे! वह भी किसी परिवार का सदस्य होगा। कोई तो होता जो उसे बचा पाता। आह! मैं तो भूल ही गया। वीडियों के रूप में उसकी यादें तो रही। मुझे माफ करना थोड़ा जज्बाती हो गया। क्या करूं ऐसे मुद्दे पर जल्दी आपा खो बैठता हूं।
नेता किसी का न होता। ये तो एसआई के तड़प-तड़पकर मरने के बाद आप सभी को पता चल ही गया होगा। आज एक वेत्रिवेल शहीद हुआ है कल कोई और। सिलसिला इसी तरह से चलता रहेगा और किसी न किसी रूप में फिर कोई हंसता परिवार मुरझाया हुआ फूल बन जाएगा। हम फिर टीवी चैनल पर किसी की लाईव मौत को हाथ पर हाथ धरकर देखेंगे।
कोई है जो उन बेशर्म मंत्रियों को कठघरे में लाएगा। क्योंकी बाकी बचे बेशर्म छिंटाकशीं करेंगे। कहां गई संवेदना?
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8 comments:
कल हम ने भी टी वी पर देखा था, लानत भेजता हुं इन लोगो पर...
भाई बहुत अच्छा लिखते हो, लेकिन इस Word Verification को हटा दो तो ओर लोग भी टिपण्णियां देगे
संवेदनायें ना बिकें, राजनीति के द्वार.
घट्नायें साक्षी बनी, नेता सब बेकार.
नेता सब बेकार,राक्षसी तन्त्र हटाओ.
मानव को जानो, वैसा ही तन्त्र बनाओ.
यह साधक क्यों संविधान का गौरव गाये?
राजनीति के द्वार, ना रही संवेदनायें.
संवेदना से शून्य हो, मानव पशु से निम्न.
पशुता शरमा जायेगी, मानवता है खिन्न.
.मानवता है खिन्न,रास्ता नजर ना आता.
क्या होगा भविष्य में , कोई ना बतलाता.
साधक अन्तरमन जैसा, बाहर नहीं है भिन्न.
पशु से भी नीचे हुआ, संवेदना से शून्य.
कल ही यह घटना पढ़ी थी. अत्यंत दुखद घटना. मंत्रियों की संवेदहीनता के लिए देश शर्मसार है.
लिखने के लिए धन्यवाद.
रूपसिंह चन्देल
isase to lagta hai ki hum fir se aadim yug ki taraf hi lout rahe hai. kyoki aaj kesi ke dil mai manvta aur samvednao ke liye koi jagah hi nahi bachi.
satya ki acchi parbhasha hai dost tumhari lekhni,shayad kuch log tere is darpan se khud ke chehre ki kalikh dekh sake
अफसोस...... ही कर सकते है......
जो इस देश में सामान्य लोग मध्यम वर्गीय लोग करते हैं.........
देश में निवास करने वाला ३२ करोड़ युवा आज अफसोस ही कर सकता है यहाँ पर क्या करे उसके सामने उदाहरण ही नही है अफसोस करने के सिवा.......
इतनी बड़ी संख्या में लोग घर में रजाई में बैठ कर कहते है ये रीत है और बस अफसोस.........
बस एक बार घर से निकालिए तब देखिये अफसोस कौन करेगा.....
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bahut khoob. achcha likhane lag gaye ho. lekh padkar man awsad de bhar gaya, lekin khushi is bat ki hai ki tu achcha likhane lag gya hai. ese hi likhate raho
well written friend ,aaj ke yuva ker kya sakte hai kya sirf afsosh ya usse bhi kuch jyada.
ispe bhi kabhi likhna,
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