Friday, September 10, 2010

कभी जो करीब था मेरे

कभी जो करीब था मेरे

कभी जो करीब था मेरे
आज क्यूँ दूर होता जा रहा है
क्या थी मेरी गलती
जो पल में मुझे भुला रहा है
शायद समझ न पाया वह मुझे
या समझना चाहता नहीं है
क्यूँ मेरे प्यार को
यूँ ही बेवफाई का नाम दे रहा है
जहाँ मेरी एक मुस्कान से
जगमगा उठती थी उसकी दुनिया
आज उसी मुस्कान को
फरेब समझ रहा है
जिसको मेरे हाथ का साथ था प्यारा
क्यों मेरे हाथों को
जंजीर समझ रहा है
कभी जो करीब था मेरे
क्यूँ दूर होता लग रहा है

लेखिका मेरी सखी है...
और प्यार से उन्हें हम शिव बुलाते हैं...