Thursday, June 9, 2011

मेरी बस्ती में...

मेरी बस्ती में कहने को तो बहुत आए
हाथ जोड़े कर गए तमाम वादे 
फिर न जाने कहां गुम हो गए
पूछता हूं मैं
क्या गलती थी उन मासूमों की
क्यों भावनाओं से
की खिलवाड़ 
नहीं चाहिए झूठी उम्मीदें
न ही हम करते तुमसे आशाएं
बस इतना कर दो ऐ जालिम
कि मयस्सर हो सब को
दो जून की रोटी व चैन ‘ओ’ सुकूं
क्या मतलब ऐसी आजादी का
जहां घुट-घुट कर
है मरना लिखा
गर यहां कोई आवाज भी
उठाता
तो कत्लेआम का उसे खौफ सताता
अरे अब तो शर्म करो
ये अत्याचार बंद करो

Saturday, March 5, 2011

मन बहुत दुखी हुआ

कुछ मनचले भोपाल मैं लगी राजा भोज की प्रतिमा ओर उनके इतिहास को स्वीकारने से परहेज करते हैं यही वजह है की उन्होंने प्रतिमा के इतिहास की जानकारी देने वाली पट्टिका पर पान गुटखे की थूक से अपनी गन्दी मानसिकता का परिचय दिया है। प्रशासन प्रतिमा लगा कर इतिश्री कर चूका पर प्रतिमा की सुरक्षा ओर रख रखाव का क्या अब यह प्रतिमा हमारे शहर की अस्मिता से जुडी है ओर इसका यूँ अपमान असहनीय है। प्रशासन प्रतिमा इसकी सुरक्षा के लिए कानून बनाये ओर पकडे जाने पर दोषियों पर कार्यवाही करे। मेरा मन यह देख दुखी हुआ ओर मोबाइल से मैंने यह तस्वीर ली।
शिवेश श्रीवास्तव

Thursday, February 24, 2011

...वह तोड़ता पत्थर

उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा और पिछड़े जिला में शुमार,आल्हा ऊदल की नगरी के नाम से ख्याति प्राप्त,वीर भूमि वसुंधरा के नाम से उद्बोधित..पानों का नगर..महोबा अपने में कई ऐतिहासिक तथ्यों को अपने में लीन किये है...बुंदेलखंड क्षेत्र से सबसे ज्यादा मंत्री होने के बावजूद ये जिला अपने काया कल्प और विकास के लिए आज भी सरकारी बाट जोह रहा है...पता नहीं कब तस्वीर बदलेगी..इस क्षेत्र की..यहाँ के नुमाइंदों की...खैर आज राजनैतिक बातें नहीं...मुद्दे की बात..
जिसने लोगों की सेवा में लगा दिया अपना बचपन .. जिले से राज्य और फिर राष्ट्र स्तर के बटोरे ढेरों पुरस्कार....जिस पर राष्ट्रपति भी हो गए निहाल..और दिया राष्ट्रपति सम्मान..जो बना युवाओं का आदर्श...मगर अफ़सोस कि वो मुफलिसी से हार गया..पेट की भूंख और रिश्तों के निर्वहन के दायित्व ने उसे तोड़ कर रख दिया..विधवा मां की बीमारी और तंगहाली से जूझने की राह ढूंढने में नाकाम हो गया वो.. लेकिन अभी भी उसमे हौसला है..उसको है अपनी जिम्मेदारियों का एहसास...जिसके लिए वो गिट्टी तोड़ने में हाड़तोड़ मेहनत कर वह अपनी पढ़ाई भी करता है और बीमार मां व बहन की परवरिश भी... मां के इलाज व बहन की शादी के लिये पैसे से लाचार ये कर्मवीर अब इस उधेड़बुन में है कि किसी तरह बहन के हाथ पीले करे..
इस कर्म योद्धा की कहानी सुनकर मुझे एक गीत कि पंक्तियाँ याद आती हैं...
बचपन हर गम से बेगाना होता है...
मगर कबरई कस्बे के राजेंद्र नगर के निवासी 17 साल के श्यामबाबू को नहीं पता कि बचपन क्या होता है...इसके होश संभालने के पहले पिता का साया इसके ऊपर से उठ चुका था..जिस उम्र में इसे अपने हम उम्र साथियों के साथ खेलना चाहिए था..उस समय इसके हाथ अपने परिवार को पालने के लिए हथौड़ा चलाते लगे... जब इसको अपना जीवन संवारना चाहिए तो इसे अपनों की रुश्वाइयों का शिकार होना पड़ा....बड़े भाई ने बीमार मां व छोटे भाई बहनों को छोड़ अपनी अलग दुनिया बसा ली...न रहने को मकान था और न एक इंच जमीन, कोई रोजगार भी नहीं.. इन कठिन हालात में इस कर्मवीर ने कस्बे के पत्थर खदानों में हाड़तोड़ मेहनत कर स्वयं मां व छोटे भाई बहनों की रोटी तलाश की...समाजसेवा का जज्बा होने के कारण अध्ययन के दौरान विविध गतिविधियों में हिस्सा ले खुद को तपाया...स्काउट गाइड, रेडक्रास सोसायटी, राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम, राजीव गांधी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम जैसे तमाम आयोजनों में इस मेधा को प्रशिस्त पत्र दे सम्मानित किया गया...सम्मान और पुरस्कारों का क्रम जिले से शुरू हो राज्य और राष्ट्र स्तर तक पहुंचा...12 साल की उम्र में राज्यपाल टीवी राजेश्वर और 14 जुलाई 10 को राष्ट्रपति ने स्काउट गाइड के रूप में बेहतर सेवा के लिये इसे सम्मानित किया.... राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित यह किशोर अभी भी पत्थर खदानों में मजदूरी कर रहा है... बीमार मां के इलाज और सयानी बहन की शादी कैसे हो यह सवाल उसे खाये जा रहा है...हर पल उसे चिंता की आग में जला रहा है... जिले का गौरव बढ़ाने वाले इस किशोर के पास रहने को झोपड़ी तक नहीं...अब तक नाना नानी के घर में शरणार्थी की तरह रहने वाले इस परिवार को अब वहां भी आश्रय नहीं मिल पा रहा है... जिले से राष्ट्रीय स्तर तक तमाम प्रतियोगिताएं जीत चुका यह किशोर असल जिंदगी की प्रतियोगिता का मुकाम हासिल नहीं कर पा रहा है.. शादी योग्य बहन के हाथ पीले न कर पाने की लाचारी में वह इसे देख निगाहें झुका लेने को मजबूर है..राज्य स्तर के ढेरों पुरस्कारों व स्काउट गाइड में राष्ट्रपति से सम्मानित श्यामबाबू को किसी सरकारी योजना में शामिल नहीं किया गया... इसके पास न रहने को घर है न एक इंच भूमि... परिवार में कोई कमाने वाला भी नहीं... हद यह कि इस परिवार को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन का कार्ड भी हासिल नहीं हुआ... प्रशासन चाहता तो कांशीराम आवास योजना के तहत इसे छत तो दे ही सकता था पर वह भी नसीब नहीं हुई... इंदिरा और महामाया आवास भी नहीं मिले... हालात से जाहिर है जिले में ऐसे जरूरतमंद उंगलियों में गिनने लायक ही होंगे.... लेकिन ऐसे इन्हीं लोगों को जब छत और रोजगार न मयस्सर हो तो फिर सरकारी योजनाओं का लाभ किसे दिया जा रहा है....अपने आप में एक बड़ा सवाल है....
प्रतिभा तोडती पत्थर या पत्थरों से टूटती प्रतिभा इसे क्या कहा जाए..आप खुद सोचिये..

Sunday, February 20, 2011

शादी के मामले पुरुष ज्यादा गंभीर


प्यार तो बहुत लोग करते हैं लेकिन बहुत ही कम लोग ऐसे खुशनसीब होते हैं जिनका प्यार परवान चढ़ता है। कभी घर वालों की रजामंदी, कभी प्यार में आई तकरार के कारण प्यार करने वाले जोड़े बिछुड़ जाते हैं, आधे से भी कम लोग होते हैं जो प्यार को परवान चढ़ाते हुए शादी करते हैं।

प्यार और उसके बाद शादी, बहुत से लोग सोचते हैं कि महिलाएं प्यार होने के बाद शादी करने के लिए ज़्यादा आतुर होती हैं। लोगों के दिमाग में शायद यह विचार इसलिए घुमड़ता है क्योंकि पुरुषों की प्रवृत्ति होती है कि वह बहुत सी चीजों को हल्के में लेते हैं, लेकिन क्या शादी जैसे गंभीर विषय को भी वह हल्के में लेते हैं?

पुरुषों का चरित्र आत्मविश्लेषी होता है, और शादी के विषय में वह महिलाओं से भी ज़्यादा गंभीर होते हैं इसीलिए वह घर बसाने में ज़्यादा विश्वास रखते हैं। एक शोध से पता चलता है कि पुरुष महिलाओं के पूरक होते हैं, समय के साथ-साथ पुरुषों के चरित्र में बहुत बदलाव आया है और इसी बदलाव का नतीज़ा है कि वह घर बसाने में ज़्यादा विश्वास करने लगे हैं।

डेटिंग वेबसाइट मैच डॉट कॉम के द्वारा कराए गए एक शोध से पता चलता है कि पुरुष घर बसाने के मामले में महिलाओं से ज़्यादा सचेत रहते हैं. इस शोध की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए शोधकर्ताओं ने 5,199 पुरुष और महिलाओं पर शोध किया. शोध के परिणामों से पाया गया कि 51 प्रतिशत पुरुष, जो 21 से 34 वर्ष के बीच थे, का कहना था कि वह जल्द से जल्द अपना घर बसाना चाहते हैं, जबकि केवल 46 प्रतिशत महिलाओं ने इस विषय पर हामी भरी। 35 से 44 प्रतिशत अविवाहित पुरुष भी महिलाओं से आगे थे।


फादरहुड इंस्टीट्यूट के विचारक एड्रियन बर्गेस का भी यह मानना है कि पहले से ही पुरुष महिलाओं के मुकाबले जल्दी घर बसाने में विश्वास करते थे हालांकि कुछ समय पूर्व तक वह अपने उत्तरदायित्व निभाने पर ज़्यादा ध्यान देते थे। वह तब तक इंतजार करते थे जब तक वे आर्थिक रूप मजबूत न हो जाएं।
(जागरण जंक्शन से साभार)

Thursday, February 17, 2011

हम उपभोक्ता नहीं निर्माता हैं...

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना,गिरकर चड़ना न अखरता है
.......
हरिवंशराय बच्चन की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद आ गई...
राजधानी भोपाल के पास एक ग्राम पंचायत कुकरीपुरा का गाँव त्रिवेणी...जिसमे लोगों की मदद और सरकारी योजना के चलते बिजली से जगमग हो गया...एक ओर जहाँ राज्य सरकार केंद्र सरकार पर कोयला न देने का आरोप लगा रही है...और बिजली की कमी का रोना रो रही है....तो दूसरी ओर ग्रामीणों का सकारात्मक प्रयास से गाँव बिजली से रोशन हो गया...वहीँ त्रिवेणी के आसपास के गाँव अँधेरे में डूबे रहते है....करीब छह सौ की आबादी वाला ये गाँव जिसमे आधे से ज्यादा घरों के शौचालयों के टैंक सीवर लाइन से जोड़े गए...और फिर केंद्र सरकार की ग्रामीण स्वच्छता योजना के तहत इस मल से बायो गैस के ज़रिये बिजली उत्पादन किया जा रहा है...करीब ५ मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है इस गाँव में...गाँव के लोग अब बिजली के लिए अँधेरे में एक दूसरे का मुंह नहीं तकते हैं...बल्कि इस बिजली से गलियों में ट्यूब लाईट जलाई जाती है...किसी की शादी विवाह में भी रोशनी के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है...सामुदायिक भवन भी रोशन हो रहा है...गाँव वालों का कहना है कि अभी जब पूरे घरों के सीवर टैंक इससे जुड़ जायेगे तो उत्पादन और बढ़ जायेगा..अब ग्रामीण न केवल टेलीवीजन चलाते हैं बल्कि एफ.एम. का आनंद भी लेते है....खैर...मेहनत तो रंग लाती ही है...बस जरूरी होता है ज़ज्बा..जोश..जूनून...और काम के प्रति लगन...
आप मेरी तकदीर क्या लिखेगें दादू?वो मेरी तकदीर है..जिसका नाम है विधाता....संजय दत्त का ये डायलोग विधाता फिल्म का याद आ गया....इस गाँव को देख कर क्या कहू...समझ नहीं आ रहा है...इतना खुश हूँ कि गाँव में रहने वाले दीन हीन लोग भी अब अपनी तरक्की के लिए आगे आ रहे हैं...और अपने विकास की इबारत भी खुद ही लिख रहे हैं....बस यही ज़ज्बा सब में आ जाये तो हिंदुस्तान को विकसित राष्ट्र बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा....

Friday, February 4, 2011

अजीब है न

आज मेरे मोबाइल पर एक सन्देश आया, जिसे पढ़कर मुझे केवल दुःख ही नहीं, बल्कि अफ़सोस भी हुआ है। अब यही सन्देश मैं आपलोगों से भी साझा करना चाहता हूँ। साथ ही यह भी चाहूँगा की आप इस सम्बन्ध में अपनी बहुमूल्य टिपण्णी जरूर दें।

किसी गरीब को २० रुपये देना बहुत ज्यादा लगता है। वहीँ अगर होटल में टिप देना हो तो यही राशि बेहद कम लगती है। तीन मिनट के लिए भगवान् को याद करना काफी मुश्किल है, लेकिन तीन घंटे की फिल्म देखना आसान होता है। पूरे दिन मेहनत के बाद जिम जाने से नहीं थकते, लेकिन जब माँ-बाप के पैर दबाना हो तो हम थक जाते हैं। वेलेंटाइन डे के लिए हम पूरे साल इंतज़ार करते हैं, लेकिन मदर्स डे कब है, हमें पता ही नहीं होता।

Friday, January 7, 2011

डू योर सेल्फ ब्रांडिंग

                             
नए साल के साथ-साथ उत्साह भी नया है, लेकिन जो कल का वक्त था वह आज नहीं है और जो आज का है वह कल नहीं रहेगा। वक्त का पहिया हमेशा अपनी रफ्तार से दौड़ता रहता है और जो वक्त की रफ्तार से कदम मिला कर चलता है, वही सिकंदर कहलाता है...

आज के प्रोफेशनल वर्ल्ड में हर यूथ की चाहत होती है कि सामने वाला उसे जाने। उसकी भी कोई मार्केट वैल्यू हो या कोई आइडेंटिटी हो। लेकिन इन चाहतों के बीच वे शायद एक महत्वपूर्ण फैक्ट नजरअंदाज कर जाते हैं कि अगर उन्हें खुद की कोई वैल्यू या आइडेंटिटी चाहिए, तो उसके लिए जरूरी है ‘सेल्फ ब्रांडिंग’। हां, अगर कॅरियर ग्राफ को एक नई ऊंचाई देनी है, तो फिर सेल्फ ब्रांडिंग से दूसरा और बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता। इक्कीसवीं सदी का एक दशक बीत चुका है और हम अब एक डिजिटल वर्ल्ड में प्रवेश कर चुके हैं। इस दुनिया में खुद को प्रेजेंट करना बेहद आसान होने के साथ ही और भी महत्वपूर्ण हो गया है। खासतौर पर उन यूथ के लिए  जो अपने भविष्य को लेकर काफी कांशस हैं।
क्या है सेल्फ ब्रांडिंग
हम और आप यह भलीभांति जानते हैं कि हर किसी में कुछ न कुछ बातें खास होती हैं, जो उन्हें अन्य से अलग करती हैं। बस जरूरत होती है, तो उन्हें परखने व तराशने की। वैसे जो इन खासियतों को समझने लगते हैं, वे इंटरव्यूअर को इंप्रेस करने में ज्यादा सफल होते हैं। बानगी के तौर पर जब भी आप इंटरव्यूअर या एम्प्लॉयर्स के सामने होते हैं, तो आपके पास फर्स्ट इंप्रेशन के लिए सिर्फ एक से डेढ़ मिनट का ही समय होता है। आज यह सब आप डिजिटल वर्ल्ड के जरिए भी आसानी से कर सकते हैं।
कॅरियर लिहाज से कैसा
वर्तमान संदर्भ में कहा जाए कि इंटरनेट के जरिए आज लगभग चीजें संभव है, तो शायद ऐसा कहना कतई गलत न होगा। आज इंटरनेट की दुनिया में नेटवर्किंग साइट खासतौर पर प्रोफेशनल नेटवर्किंग साइट्स जैसे- लिंक्डइन, सिलिकॉनइंडिया, फेसबुक आदि के जरिए यूथ आसानी से अपनी ‘सेल्फ ब्रांडिंग’ कर सकते हैं। लेकिन हां, एक चीज का विशेष ध्यान रहे किआप अपने डिजिटल रिलेशंस किसी सही राह पर ले जाएं। इसके इतर यह भी ख्याल रहे कि आप जिस नेटवर्किंग साइट विशेष से ताल्लुकात रख रहे हैं, वह आपके कॅरियर ग्राफ को हाइट देने के लिहाज से सही है या नहीं।
प्रोफाइल हो सटीक
प्रोफेशनल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए आप कई प्रोफेशनल लोगों से जुड़ते हैं, इनमें कई तो एम्प्लॉयर भी होते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि इन नेटवर्किंग साइट्स पर आप अपने प्रोफाइल में सटीक संदेश प्रेषित करें। ऐसा करने से एम्प्लॉयर को आपसे संबंधित चीजें समझने में आसानी होगी। आजकल वैसे भी नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े लोगों की प्रोफाइल समीक्षा कर एम्प्लॉयर द्वारा नियुक्ति का चलन हो गया है। होता यूं है कि साइट्स के जरिए विचार का आदान-प्रदान करते वक्त मिलने वाली रोजक जानकारी से भी सामने वाला व्यक्ति प्रभावित होता है। फ्रेशर्स जो रोजगार की तलाश में हैं, उनके लिए सुझाव के तौर पर यह है कि वे अपनी प्रोफाइल में ऐसा कुछ न लिखें, जिससे एम्प्लॉयर्स पर उल्टा असर पड़े। साथ ही अपने नेटवर्क में ऐसे लोगों को जोड़ें, जो वास्तव में आपका व्यक्तित्व दर्शाता हो।

प्रोफशनल नेटवर्किंग साइट्स
सिलिकॉन इंडिया
लिंक्डइन
फेसबुक
अपना सर्कल
कनेक्शंस