Monday, July 30, 2012

“Learning Through Sports”

जब भी मैं अपने बचपन के दिनों को याद करता हूँ तो मेरे और खेल के बीच मे एक अनोखा संबंध पाता हूँ। जिम्मेदारियों से परे, बिना किसी के भय के घंटो खेलते रहना मुझे अभी भी याद है और यह केवल मेरी बात नहीं है, बचपन अवस्था होती ही कुछ ऐसी है। शायद कोई ही ऐसा होगा जिसने बचपन मे कोई खेल न खेला हो। खेलरूपी मेरे कई मित्र रह चुके हैं लेकिन चेस और क्रिकेट का तो जैसे जुनून था। खेलों मे कुछ वो खेल भी थे जिन्हें हम गिल्ली–डंडा, कबड्डी ,हुतुतु ,खो-खो कहते हैं| आज भी इन सब खेलों को देखने या खेलने पर बचपन की यादें ताजा हो उठती है|
अगर खेल से सीख की बाते करें तो इसे हम बता नहीं सकते की इससे इतना ही ज्ञान प्राप्त होगा। हर खेल का अपना एक अलग महत्वपूर्ण योगदान है और कई चीजे सीखा देता है। कोई खेल हमे टीम भावना(मिल काम करना,एक दूसरे का सहयोग करना) सिखाता है तो कोई लक्ष्य हासिल करने के गुण। किसी खेल से हम अपने शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं तो कोई खेल साहस , संतुलन ,आत्मविश्वास एवं धैर्य आदि गुणों के विकास मे अहम भूमिका अदा करती हमे दिखाई देती है| काफी कम शब्दो मे खेल से सीख को परिभाषित करना नाइंसाफ़ी होगा। पापा कहते थे चेस खेलो दिमागी शक्ति बढ़ेगी, केरम खेलो एकाग्रता बढ़ेगी, पर किसी ने यह नहीं बताया की Physics के laws, chemistry के सूत्र, Math के सूत्र तथा अन्य विषयों के कठिनतम पक्ष भी हम खेल खेल मे सीख सकते हैं।(उदाहरण के तौर गुरुत्वाकर्षण के नियम, दवाब, गति, वेग ये सारी बातें हम बॉल के प्रयोग से सीख सकते हैं आदि)
भारत मे खेल के क्षेत्र मे अपना भविष्य देखना या कैरियर बनाना संघर्ष और चुनौती से भरा है, मिट्टी के बर्तन भी तभी बन पाते हैं जब मिट्टी गीली हो, सुखी मिट्टी से बर्तन बनाना अनापेक्षित है। सरकारी स्कूल मे जब बच्चा 9वीं कक्षा (15 वर्ष की आयु) मे प्रवेश लेता है तो ही PT मे प्रशिक्षण पा सकता है, और अगर कोई बच्चा इसके तरफ आकर्षित भी हुआ तो सही मार्गदर्शन एवं सही प्रशिक्षण का अभाव या शालाओं में व्यवस्थागत अभावों के कारण ऐसे विद्यार्थियों की पहचान नहीं हो पाती और ना ही उनकी निर्दोष बाल सुलभ बहुमूल्य ऊर्जा को एक उचित दिशा मिल पाती हैं जो उन्हें असीमित सफलता की ऊँचाइयों की ओर ले जा सकती है|
पढ़ाई मे अच्छे मार्क्स लाने के चक्कर मे और एक सुखद जीवन जीने के लिए लोग अपने खेलने के कौशल को कहीं पीछे छोड़ आते हैं। जिसका उदाहरण हम चल रहे ओलिम्पिक से ले सकते हैं जो कई सवालों को सामने ला खड़ा करता है, क्या 120 करोड़ की आबादी वाला देश सिर्फ 83 खिलाड़ी ही ओलिम्पिक मे भेज सकती है? क्या हमारे देश मे प्रतिभावों की कमी है या नीतियाँ कमजोर पड़ रही है? राजनीति कितना जवाबदार है इसके लिए? एक तरफ RTE बच्चों के सह संज्ञानात्मक क्षेत्रों के विकास के लिए वकालत कर रही है, परंतु क्या खेल संबन्धित संसाधन जूटा पा रही है? देश के अधिकांश राज्यों मे जहां विषय शिक्षक का आभाव है, वहाँ खेल प्रशिक्षक लाना कितना चुनौतीपूर्ण है?
बस एक आस रह जाती है लोगो के अंदर कि अब मेरा बच्चा वो सब करेगा जो मैं अपने कुछ पाबंदियों और ज़िम्मेदारी के कारण नहीं कर पाया।
Manish Kr. Singh

Azim prem ji foundation

2 comments:

Manish said...

Thanks Bro...

Abhishek Roy said...

Bhot badhiya manish. Sarthak prayas. Keep going...