Sunday, January 17, 2010
मन में एक डर सा है
पता नहीं पर क्यूँ लगता है,
पास हो के भी दूर लगती हो
मन में एक डर सा है
खो न दूं कहीं तुम्हें
महीने भर कटा रहा
अजब सा लगता रहा
लगा जैसे धड़कने तेज हो गई
रातें और मुश्किल होती गई
एक ओर है दुनियादारी
दूजा है तेरी यारी
पलपल मेरी जान है जाती
मुझको तेरी याद सताती
मन में एक डर सा है
खो न दूं कहीं तुम्हें
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
kuch sacchai man ki,
rishton ke kuch bol,
vashvikta ke kuch pahre,
acchai ki amrit ghol,
shabdon ki dhara me nikli hai,
man se aaj jaban pe fisli hai.
....kyon balak sahi kaha na,its life man
haan yaar bilkul sahi.
ye mere andar se nikli hui bhawnayien hain
Post a Comment