हर दिन हजारों मौत मरता हूं
जब भी होता हूं अखबार और चैनलों से रूबरू,
देख चारों ओर
मारकाट, अत्याचार और बलात्कार।
पूरे शरीर में एक सिहरन सी उठती है।
ख़बर में आज एक और इज्जत हुई तार-तार
फिर हुई नारी शक्ति लाचार, खूनी व वहसियों की शिकार
वहीं अपनो ने ही
धारदार हथियार से
अपने ही बंधुओं पर किया वार
यह क्या हो रहा है?
प्रभु भी सोच रहे होंगे, कितना बदल गया है संसार।
जिस बुद्धिजीवी प्राणी की रचना की
आज वही सृष्टि का
नाश करने पर उतारू हो गए है।
Monday, February 1, 2010
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1 comment:
एक सच लिख डाला आपने। बहुत उम्दा विचार हैं। निरंतर बनाए रखें। और ब्लॉगवाणी पर अगर नहीं तो शीघ्र अपने ब्लॉग वहाँ दर्ज करवाएं।
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