
हमेशा की तरह इस बार बुजुर्गों ने नहीं कहा। हाँ लेकिन युवापीढ़ी ने जरूर कहा। वैलेंटाइन डे यानि के प्रेमियों का पर्व। दो दिल का मिलन। इस दिन कोई प्यार का हाल-ए-दिल बयां करता है तो कोई अपनी वैलेंटाइन के लिए पूरा दिन न्यौछावर करता है।
14 फ़रवरी । हाँ। प्रेमपर्व। प्रेम के पंछियों का पर्व। जिस तरह एक बच्चे को उसका तोहफा उसे सबसे अजीज होता है। ठीक उसी प्रकार प्रेमी पक्षी एक दुसरे के लिए अपने आप को तोहफा समझते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने "समझते हैं" क्यों लिखा। क्या लगता है आपको। क्या वाकेई में प्रेम जैसा कुछ है आज के दौर में। दो-चार प्रेम कि बाते कर लेने मात्र से प्रेम नहीं हो सकता है।
आज प्रेम कि परिभाषा बदल चुकी है। प्रेम केवल स्वार्थ मात्र रह गया है। जी हाँ केवल स्वार्थ। जिसके साथ जीने मरने कि कसमें खायीं थी। आज उसी को हम समझ नहीं रहे। अगर कोई लड़की परिस्तिथिवश अपने प्यार को प्यार नहीं दे पा रही हो तो इसका मतलब ये तो बिलकुल ही नहीं है कि प्रेमी आक्रोश में आकर उसकी जान ले ले।
ये कैसा प्यार है। हाँ शायद आज के दौर में यही प्यार है।
मैं उन तमाम प्रेमियों को सन्देश देना चाहता हूँ कि प्यार जबरदस्ती कि चीज़ नहीं होती। प्यार तो एक एहसास है जिसे अलफ़ाज़ कि जरूरत नहीं होती.... फिर भी हैप्पी वैलेंटाइन डे।