Friday, February 5, 2010

एहसास माँ को...

पता नहीं पर क्यूँ लेकिन लिखने का मन किया और लिख डाला। हर बार की तरह 4 फ़रवरी की सुबह भी मेरे लिए एक नया सवेरा लेकर आया। सब कुछ ठीक चल रहा था ऑफिस में भी मस्ती के साथ पूरा दिन बीता लेकिन होनी को कौन टाल सकता हैजो होना है वह हो कर ही रहेगा

मैं
थोड़ा भावुक हूँ इसलिए भावनाओं में जल्दी बहक जाता हूँ28 फ़रवरी को रंगों का पर्व है और इस दिन हर कोई अपने रंग में सराबोर रहता है मन में अजीब सा कौतुहल घर जाने को लेकिन उफ़! ये काम कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़ता। मेरी बॉस। काफी एनर्जेटिक और हार्डवर्कर भी। मुझसे कहा ग्वालियर जाना है। मैंने पहले कहा था न। भावुक। हाय ये कमजोर दिल। नहीं माना। ले ली टेंशन। मन में दो बातें घर कर गयीं। फिर क्या, एक ओर घर की याद दूसरी ओर बॉस की बात।

शाम को ऑफिस में ब्लॉग देखा फिर देखी घड़ी। घड़ी की सुई बता रही थी कि वापस जाने का वक़्त हो चला है। पहली बार दोस्त के साथ न जाकर अकेले ही निकल गया। लेकिन इस वक़्त भी अकेला नहीं था। साथ में थी मन में दो बातें। जो आपस में टकरा रही थी।

बाहर सड़क पर ट्रैफिक भी जबरदस्त थी। मैं चला जा रहा था कि अचानक सामने से मारूति अल्टो से जबरदस्त टक्कर हो गई। एक पल तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ। लेकिन भगवान और परिवार कि आशीष कि वजह से मुझे कुछ नहीं हुआ। सारे जख्म मेरी गाड़ी ने अपने ऊपर ले लिया।

लेकिन इन सब से दूर बैठी मेरी माँ को मेरे दर्द का एहसास हुआ और एक्सिडेंट के ठीक आधे घंटे बाद घर से पापा का कॉल आया। सबसे पहले मुझसे पुछा वहां सबकुछ ठीक है कि नहीं। मम्मी चिंता कर रही है और तुम फ़ोन भी नहीं करते हो। इतना कहते ही माँ ने फिर मेरा हाल पुछा। मैं घबरा गया। क्या बताऊँ। मैंने कहा कि यहाँ सब ठीक है...

लेकिन ये माँ कि ममता ही है जो उतनी दूर हो कर भी अपने बेटे पर आये खतरे को भांप लिया।

No comments: